मास्टरबेशन एक समस्या या एक दुविधा जिससे हर पीढ़ी के युवा प्रभावित, सही-गलत का फैसला करना कठिन हो जाता है।
अपने जैसा ही जीवन उत्पन्न करना प्रकृति का मूल कार्य सिद्धांत है। हर जीवन्त स्थिति में दिखेगा पेड़-पौधे हों, जानवर हों या इन्सान हों।
मनस के विकास के कारण मनुष्य सुख-दुःख की स्थिति को नियंत्रित करना चाहता है। एक उम्र के बाद पुरुषों में स्त्रियों के प्रति और स्त्रियों के पुरुषों के प्रति एक गहरा आकर्षण होने लगता है।
आकर्षण के कारण शरीर की ऊर्जा जननांगों की तरफ बहने लगती है। अपने विचार शक्ति, अनुवांशिक यादें, सामाजिक माहौल से मिले ज्ञान से प्रभावित होकर सुख की अनुभूति के लिए अपने जननागों का स्पर्श शूरू करते हैं। यही स्थिति आदत में बदल जाती है।
तब किसकी बात मानी जाये। पशाचत्य की बात मान भी लेते लेकिन आयुर्वेद ठीक विपरीत कहता है। न तो इसके सहज और स्वाभाविक होने की बात स्वीकार करता है और न ही ऐसा करने से लाभ की ही बात करता है।
ऐसे दुविधा में लोगों को मास्टरबेशन के बाद एक ग्लानि का भाव अंदर से आ ही जाता है
पूरी बात सुनने के बाद अपने विवेक का प्रयोग करना और उससे अच्छा होगा तुम 2 महीने कठोरता से इसको नियन्त्रण में करके देखो तुम्हें स्वयं बहुत से बदलाव देखने को मिलने लगेगा।
नमस्कार!